कोई
व्यक्ति शारीरिक दृष्टि से चाहे कितना भी बलशाली क्यों न हो, यदि वह
मानसिक रुप से दुर्बल है तो जीवन में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। मन एक
महासागर के समान है जिसका कोई छोर नहीं होता है | मन को वश में करना बड़ा ही कठिन कार्य
है।मन के किसी एक
सर्वमान्य रुप का निश्चय नहीं हो सकता। शायद इसलिए भी मन को सभी इंद्रियों का स्वामी माना जाता
है।
गीता में मंन को चंचल गति वाला
बताया गया है। यह मन कहाँ-कहाँ भटकता है। यह किसी से अपना संबंध जोड़ता है तो वही दूसरी ओर किसी से अपना संबंध विच्छेद करता है।
मनुष्य की हार-जीत
सच्चे अर्थों में मन के अंदर ही निहित है। और इसीलिए मन से हारे व्यक्ति की जीत
सर्वथा असंभव है। चाहे युद्ध का मैदान हो या खेल का मैदान, यदि मन हार गया
तो तन भी हार गया । कोई काम कैसा भी और कितना भी कठिन क्यों न हो, यदि मन
में उत्साह है तो वह निश्चय ही पूर्ण होगा। यदि मन पहले ही हार बेठा तो
साधरण-सा काम भी पहाड़ बन जाएगा।
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भगवान श्री कृष्ण ने भी अर्जुन को उपदेश दिया था कि ,"मन की दुर्बलता को छोड़कर युद्ध के लिए तैयार हो जाओ"।
गुरु
नानकदेव जी ने कहा है," मन जीते, जग जीते"।
जीवन
का यह अटल सत्य है कि मन की हार सबसे बड़ी हार है। व्यक्ति जब भी
गिरता है तो मन से गिरता है। वह हारता है तो मन से ही हारता है| छात्र जीवन में मन की विजय का बड़ा महत्व है | अगर कोई कमजोर विध्यार्ती मन से ठान ले तो वह न केवल अच्छे अंको से उत्तीण हो बल्कि कक्षा में पहला स्थान भी प्रात्प कर सकता है | हमें किसी भी कार्य में हीन भावना
का शिकार होकर निरुत्साहित नहीं होना चाहिए | सफलता की प्राप्ति के लिए पूरे मन से प्रयत्नशील बने रहो, निश्चय
ही आपकी साधना सफल होगी। मन से कभी हार न मानो, इस स्थिति में जीत आपका
स्वागत करेगी।
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