सत्ता की भूख / SATIRE
सत्ता की भूख का पैदा होना बड़ी राजनीतिक पारी खेलते रहने का सूचक भी है।||सत्ता की भूख SATIRE||
_Aditya Mishra Blogger
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Sketched by @rohitbahekar589 |
सत्ता की भूख
भूख चाहे सत्ता की हो या सत्तू की, पेट में चूहे कूदने ही लगते हैं। हालांकि, सत्ता की भूख थोड़ी अलग होती है|इसमें आप कितना भी खा लो, पर डकार नहीं आती। सत्ता की भूख के लिए बाजार से सामान नहीं, विधायक खरीदने होते हैं। दिलचस्प बात यह है कि आपको बिकते हुए विधायक आसानी से मिल जाएंगे। सत्ता की इस भूख में ज्यादा खाने से पेट जरूर निकलने लगता है। राजनीति में कई बड़े चेहरे हैं, जो सत्ता में आकर शरीर और हैसियत दोनों से मजबूत हो गए हैं। राजनीति में फिटनेस का फंडा नाकाम है, उल्टे यहां भूख थोड़ी ज्यादा ही लगती है। जिसकी जितनी ज्यादा भूख, उसका उतना ज्यादा दबदबा.
विपक्ष में हो तो सत्ता की भूख और सत्ता में हो तो भत्ता की भूख. यहां सब कुछ पच जाता है। इसीलिए नेता लोगों के हाजमे भी एक रिसर्च होनी चाहिए। आखिर कौन सा ऐसा चूर्ण खा रहे हैं कि सब कुछ पच जाता है!
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खैर सत्ता को पाने के बाद इसमें बने रहने की चिंता ही भूख को जन्म देती है। इसीलिए सत्ता में रहने वाले कई बार दूसरों की भूख का भी इलाज कर देते हैं। वास्तव में सारी कोशिश वोट की होती है, जिसे मिल जाता है वह और पाने की तलाश में रहता है। जो तरस जाता है, वह अगले मौके का इंतजार करता रहता है। विपक्ष वाले भी दोबारा वापसी की आशा में रहते हैं।
सत्ता की भूख प्रायः नेताओं तक ही सीमित रहती है, यह सही नहीं है। सत्ता के रूप बदल जाते हैं, लेकिन भूख वही रहती है। दफ्तर से दफ्तर और आदमी से आदमी इसका ट्रांसफर होता रहता है। इसीलिए शीर्ष पर बने रहने की भूख कभी खत्म नहीं होती। राजनीति में तो इसके कारण साम-दाम-दंड-भेद सभी पैंतरे अपनाए जाते हैं। खरीद-फरोख्त, आरोप-प्रत्यारोप से लेकर पद की चाशनी भी चटाई जाती है।
सत्ता की भूख का पैदा होना बड़ी राजनीतिक पारी खेलते रहने का सूचक भी है। इसीलिए राजनेता बनने के लिए इस भूख का अभ्यास करना सबसे जरूरी है। जिसकी यह भूख मिट जाती है, उसका करियर भी खत्म होने लगता है। शायद यही कारण है कि सभी भूखे ही नज़र आते हैं।
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