Migrant workers - Hindi poem
हिंदुस्तान तेरे साथ है
_विमर्श
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Sketch credit Ig: @artisic_riya Ig:@essaylikhnewala |
वो नंगे पैर तपती सड़क पर चल रहा है
क्योकि,
शायद अभी वो हमारे सपने नहीं बुन रहा है
ना ही वो हमारे लिए कारखानों में जल रहा है
शायद इसलिए वो अकेले चल रहा है
खाने को रोटी नहीं है उसके पास
फिर भी रुकना वो नहीं चाहता
शायद उसे अब तेरा ये निर्दय शहर नहीं भाता
इस उम्मीद से आया था कि कुछ पैसे कमाएगा
चूल्हे की आग में जलती माँ को
बेहतर जीवन दे पायेगा
पिता के बूढ़े पैरो के लिए जूते सिलवायेगा
मगर आज वो हताश है उस को
इस शहर में किसी अपने की तलाश है
क्या उसके वो अपने हम नहीं बन सकते?
कुछ दूर उसके साथ चल कर
उसके कुछ दुःख हर नहीं सकते ?
माना इस समस्या का भार सबके कंधो पर है
पर क्या हम कुछ और भार ढो नहीं सकते ?
एक बार तो सोच अगर वो चला गया
क्या वो लौट कर आएगा ?
उसके बिना तेरा ये शहर थम जायेगा
तेरे शहर की विशाल इमारतें कैसे होगी खड़ी ?
जब बुनियाद भरने वाला ही चला जायेगा
क्या इतना मुश्किल है ये समझना
इस प्रगति का वो एक अमूल्य हिसा है
इंसानियत के नाते ही देदे साथ उसका
एक इंसान को दुसरे इंसान से जोड़े इंसानियत
वो पवित्र रिश्ता है
हमारे बीच जो आ गयी दूरी,
शायद उसे मिटा नहीं सकते
पर है वदा तू भूखा न सोयेगा,
अब
यूँ सड़क किनारे बैठ अकेले न रोयेगा
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आराम करते मज़दूर |
ओ जाने वाले मुसाफिर
तू एक पल ठहर जा ,
देख पीछे मुड़कर तेरी
परीक्षा का क्या परिणाम आया है
ये बिखरा हुआ देश फिर एक बार
तेरे कारण साथ आया है
तू क्यों व्यर्थ ही करता है चिंता
तेरे सफर को अंजाम तक अब हम सब ले जायेंगे
समझेगे खुद को खुश किस्मत अगर
तेरे सफर की धूल भी बन पाएंगे
तू सब्र कर तेरे सिर पर रब का हाथ है
तूने अकेले शुरू किया था ये सफर
अब पूरा हिंदुस्तान तेरे साथ है
Thank You for reading Migrant workers - Hindi poem
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1 comment:
A moving poem....
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Thank you for reading. Stay tuned for more writeups.