कविता: जिन खोजा तिन पाइयां
_अमित सिंह चन्देल
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Credits Ig:@mrkapture @essaylikhnewala |
तलाश है सुकून की जो अब तलक है दूर-दूर।
क्या खो दिया, क्या पा लिया, नहीं अब मलाल है,
बस, सुकून की तलाश है, सुकून की तलाश है।
नहीं मिला अब तलक बहुत फिरा इधर-उधर,
मिलेगा एक दिन वह अभी नहीं निराश हूँ।
उसी की तलाश अब मेरा एक ख्वाब है।
वह है कहाँ, कैसे मिले, हूँ इसी प्रयास में,
मिलेगा एक दिन सोच फिरता रहा हर पहर।
था मगर वह जहाँ छिपा नहीं गई मेरी नजर,
मैं छोड़ आया इक गली, मैं छोड़ आया इक शहर।
फिरा मैं मंदिर-मंदिर और गिरजाघर के दर,
शिलाओं पर चढ़ा कभी, आसमानों पर उड़ा बहुत।
शिलाओं पर चढ़ा कभी, आसमानों पर उड़ा बहुत।
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छुपा रहा मैं खोह में हर समुद्र लाँघता रहा।
जिंदगी के संग-संग ले गई जिधर-जिधर,
सोचता रहा यही तलाश होगी कब खतम।
उड़ा बहुत मैं मगर फिर जरा फिसल गया.
मैं फिर उड़ा ये सोचकर, सफर को मान हमसफर।
है जिन्दगी का प्यार भी है जिन्दगी का ख्वाब भी,
खत्म होगी न जब तलक मेरी ये तलाश भी।
मैं फिर चला चलता गया हौसले की थी पुकार,
थी दिखी एक रोशनी अँधियारे के उस पार।
वो दूर से ही दिख रहा आ गया मेरी नजर,
हूबहू एक शख्स था जो देख मुस्करा रहा।
आँख में आँसू लिए मैंने उससे ये कहा
रास्ता काँटों भरा, पर खुश हूँ बहुत जो तू मिला।
मुझे मेरा सुकून दे न कर सकूँ इंतजार।
मैं आदमी बहुत भला ढूँढे मिला तू अब मुझे,
ये सब्र की है इंतहा, हो रहा हूं बेकरार।
मुझको सुकून मिल गया, खुश हुआ मैं उस डगर
फिर, सूरज की वो रोशनी नहीं वहाँ कोई मगर।
था मगर एक आईना उस आईने में इक शकल,
आईना था ज्ञान का, मुझमें आई तब अकल।
हँस के कहने वो लगा कब मैं दूर ही रहा,
मैं तुझमें ही रहा सदा, तूने कब खोया मुझे?
ईश का है अंश तू, स्वयं से है क्यूँ भागता?
जो वस्तु है खोई नहीं उसे रहा हूं ढूँढता।
न मैं तुझसे दूर हूँ, न तू मुझसे दूर है,
ये फासले हैं तिमिर के उसे पहले दूर कर।
ये दौड़ तेरी व्यर्थ है ऐसे नहीं तलाशते।
मन में तेरे हूँ बसा हर जीव मेरा खास है,
मैं दौड़ में आराम हूँ तिमिर में प्रकाश हूँ।
तू दौड़ता रहा यूँ ही, मैं तो उसी ठौर हूँ,
नाम देते हैं कई मेरे फिर भी मैं अनाम हूँ।
तेरे लिए मैं खास हूँ, मैं हर किसी के पास हूँ,
चाहतों के दौर में मैं हर किसी की आस हूँ।
अभी खड़ा है तू जहा निर्द्न्द्ध से तू ढूँढना,
आँख बन्द कर अभी, मुस्कुरा के ढूँढना।
उस आइने को साफ कर जो आइना तुझे दिया,
सुन! मैं क्या कह रहा तू स्वयं को पहचान ले,
अहं को खाक कर, तू रोशनी को साथ ले,
है सुकून अब पास में, बाहर तुझे क्या मिला।
सुकून तेरा जुनून है ये है हकीकत मान ले,
समय तेरा है, घर तेरा है ठहर कर तू जान ले।
तुझसे पहले और भी चले बहुत है इस डगर,
रास्ता भटक गए हैं फिर रहे हैं दर-बदर।
ये जिन्दगी तेरी है नई है नहीं डगर,
संग-संग चल तू कर मत अब फिकर।
Thank you for reading कविता: जिन खोजे तिन पाइयां
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1 comment:
❤❤❤❤❤❤❤
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Thank you for reading. Stay tuned for more writeups.